chandrayaan-2 रांझणा स्टाइल में एक बार पढ़े-
बस इतनी सी कहानी थी, मेरी एक इसरो चीफ था जो फफक कर रो पड़ा था, कुछ साइंटिस्ट थे जो दिल में कसक लिए चेहरे पर औपचारिकता सजाए बैठे थे, कुछ डेटा अनालिसिस्ट थे जो अब भी इस उम्मीद में थे कि सिग्नल दोबारा शुरू हो जाए, एक देश का मुखिया था जो कलेजा कड़ा करके सबको ढांढस बंधवाता फिर रहा था, एक देश की जनता थी जो टीवी सेट्स के आगे अपनी उम्मीदों को टूटता देख रही थी।
मेरा ओरबिटर था, मेरा रोवर था, चांद की बिरान बंजर धरती थी और ये एक हमारा शरीर था जो हमें छोड़ चुका था... हम उठ सकते थे मगर किसके लिए ? हम सिग्नल भेज सकते थे मगर किसके लिए ? मेरा देश, मेरे देश की जनता, इसरो, श्रीहरिकोटा सब मुझसे छूट रहा था, मेरे अंदर का कम्युनिकेशन सिस्टम या तो मुझे जिंदा कर सकता था या मुझे मार सकता था।
पर अब साला उठे कौन, कौन फिर से मेहनत करें? आग में पिछवाड़ा सुलगा कर लॉन्च हो जाने को, 3 लाख किमी की यात्रा के बाद सॉफ्ट लैंडिंग कराने को, अबे कोई तो आवाज़ देके रोक लो, यह जो बगल में बैठे बित्त भर के पाकिस्तानी उछल उछल कर जश्न मना रहे हैं, महादेव की सौगंध दिल करता है अभी उठकर PKMKB का सिग्नल भेज दूं! लेकिन नहीं, अब साला मूड नहीं है, देश के स्पेस मिशन को बस एक तुक्का नहीं साबित करना है कि कोई पिक्चर बनाकर बताएं कि एक बार ऑन ऑफ करने से काम बन जाता, ताकि कोई फेसबुक पर ये ना कह डाले कि नारियल के फोड़ने या न फोड़ने से स्पेस मिशन फेल हो गया, वैज्ञानिकों की अथक मेहनत को किसी इत्तेफाक भर जितना छोटा नहीं बनाना है ताकि सब समझ जाएं कि 99% को 100% देना ही एकमात्र विकल्प है कोई शॉर्टकट नहीं।
इसलिए आंखें मूंद लेने में ही सुख है, सो जाने में ही भलाई है... पर उठेंगे किसी रोज एक नए नाम से लॉन्च हो जाने को, चांद की इन कक्षाओं में फिर से दौड़ जाने को, चांद की जमीन पर रोवर सुरक्षित लैंड करवा जाने को। 🇮🇳❤❤
#राहुल गोरखपुरी
बस इतनी सी कहानी थी, मेरी एक इसरो चीफ था जो फफक कर रो पड़ा था, कुछ साइंटिस्ट थे जो दिल में कसक लिए चेहरे पर औपचारिकता सजाए बैठे थे, कुछ डेटा अनालिसिस्ट थे जो अब भी इस उम्मीद में थे कि सिग्नल दोबारा शुरू हो जाए, एक देश का मुखिया था जो कलेजा कड़ा करके सबको ढांढस बंधवाता फिर रहा था, एक देश की जनता थी जो टीवी सेट्स के आगे अपनी उम्मीदों को टूटता देख रही थी।
मेरा ओरबिटर था, मेरा रोवर था, चांद की बिरान बंजर धरती थी और ये एक हमारा शरीर था जो हमें छोड़ चुका था... हम उठ सकते थे मगर किसके लिए ? हम सिग्नल भेज सकते थे मगर किसके लिए ? मेरा देश, मेरे देश की जनता, इसरो, श्रीहरिकोटा सब मुझसे छूट रहा था, मेरे अंदर का कम्युनिकेशन सिस्टम या तो मुझे जिंदा कर सकता था या मुझे मार सकता था।
पर अब साला उठे कौन, कौन फिर से मेहनत करें? आग में पिछवाड़ा सुलगा कर लॉन्च हो जाने को, 3 लाख किमी की यात्रा के बाद सॉफ्ट लैंडिंग कराने को, अबे कोई तो आवाज़ देके रोक लो, यह जो बगल में बैठे बित्त भर के पाकिस्तानी उछल उछल कर जश्न मना रहे हैं, महादेव की सौगंध दिल करता है अभी उठकर PKMKB का सिग्नल भेज दूं! लेकिन नहीं, अब साला मूड नहीं है, देश के स्पेस मिशन को बस एक तुक्का नहीं साबित करना है कि कोई पिक्चर बनाकर बताएं कि एक बार ऑन ऑफ करने से काम बन जाता, ताकि कोई फेसबुक पर ये ना कह डाले कि नारियल के फोड़ने या न फोड़ने से स्पेस मिशन फेल हो गया, वैज्ञानिकों की अथक मेहनत को किसी इत्तेफाक भर जितना छोटा नहीं बनाना है ताकि सब समझ जाएं कि 99% को 100% देना ही एकमात्र विकल्प है कोई शॉर्टकट नहीं।
इसलिए आंखें मूंद लेने में ही सुख है, सो जाने में ही भलाई है... पर उठेंगे किसी रोज एक नए नाम से लॉन्च हो जाने को, चांद की इन कक्षाओं में फिर से दौड़ जाने को, चांद की जमीन पर रोवर सुरक्षित लैंड करवा जाने को। 🇮🇳❤❤
#राहुल गोरखपुरी
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